करीब डेढ़ दशक पहले महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर जेएनयू में कवि रमाशंकर यादव विद्रोही ने कहा था, "गांधी जी को कभी किसी ने टोपी लगाते नहीं देखा, गांधी जी की टोपी वाली तस्वीर कभी किसी ने नहीं देखी होगी मगर गांधी टोपी देश में मशहूर है। जिस आदमी ने गांधी टोपी का प्रचार किया होगा, वह जरूर टोपियों का बड़ा ठेकेदार रहा होगा। गांधी जी की टोपी को लेकर लोग टोपीवाले हो गये। उनके खानदान के लोग टोपी लेकर पेट से पैदा होते हैं। और गांधी जी को मरवा भी दिया गया और पागल भी घोषित कर दिया गया। इतना अपमान शायद ही किसी महान आदमी का हुआ होगा जितना इस महान आदमी का हुआ। इसलिए हम उन सबकी तरफ से महात्मा गांधी के प्रति सिर्फ शर्मिंदा हैं, सिर्फ शर्मिंदा हैं।"
दि वायर द्वारा डिलीट किया गया शुभनीत कौशिक का लेख
कहाँ तो शुभनीत जी द्वारा उठाए सवालों पर प्रबुद्ध समाज को चर्चा करनी चाहिए था, कहाँ उन सवालों को ही दफन करने का प्रयास किया गया! शुभनीत कौशिक के उस लेख का लिंक आखिर में दिया गया है और उसे पढ़कर आप खुद देख सकते हैं कि उसमें ऐसे कौन से सवाल थे, जो डिलीट किये जाने योग्य थे! लेख पढ़कर आप देखेंगे कि उसमें वही बात कही गयी है जो इन अग्रणी गांधीवादियों और मार्क्सवादियों ने दशकों से अपने पाठकों को बता रखी हैं। शुभनीत कौशिक की गलती केवल इतनी थी कि उन्होंने सुभाषिनी अली, वीरभारत तलवार, चण्डी प्रसाद भट्ट, अचिन विनायक, नन्दिता हक्सर इत्यादि की बातों को गम्भीरतापूर्वक ले लिया। नतीजा ये हुआ कि उनके लेख से भारत के लेफ्ट-लिबरल जमात की आँत उलटकर जनता के सामने खुल गयी। दुनिया को इनके आँत में छिपे दाँत दिख गये। दुनिया को दिख गया कि 'फ्री स्पीच' के ठेकेदारों को अपनी जमात की आलोचना में छपा एक सामान्य लेख भी बर्दाश्त नहीं होता।